मुक्तक
वक़्त के साँचे में ढल कर हम लचीले हुए,
रफ़्ता-रफ़्ता ज़िन्दगी के पेंच सब ढीले हुए,
इस तरक़्क़ी से भला क्या फ़ायदा हमको हुआ?
प्यास तो कुछ बुझ न पाई, होंठ बस गीले हुए…..
वक़्त के साँचे में ढल कर हम लचीले हुए,
रफ़्ता-रफ़्ता ज़िन्दगी के पेंच सब ढीले हुए,
इस तरक़्क़ी से भला क्या फ़ायदा हमको हुआ?
प्यास तो कुछ बुझ न पाई, होंठ बस गीले हुए…..