मुक्तक
गमों की महफिल में केवल हम झिलमिल तारे है
इक हमें छोड़ कर यहां सब मुहब्बत के मारे है
इनके हाल ऐ दिल का शायद मुझे अंदाजा नहीं
ये डूब चुके उस दरिया में जहाँ कोसों दूर किनारे हैं
गमों की महफिल में केवल हम झिलमिल तारे है
इक हमें छोड़ कर यहां सब मुहब्बत के मारे है
इनके हाल ऐ दिल का शायद मुझे अंदाजा नहीं
ये डूब चुके उस दरिया में जहाँ कोसों दूर किनारे हैं