मुक्तक
हाथों के मेहंदी की लाली तनिक नहीं धुंधलाई थी,
आँखों में काजल की रेखा ज्यों की त्यों ही छाई थीं,
सोचो क्या बीती होगी उस दुल्हन के दिल पर साथी?
जिस रोज सुहाग की अर्थी आँगन कांधे धर के आई थी।
हाथों के मेहंदी की लाली तनिक नहीं धुंधलाई थी,
आँखों में काजल की रेखा ज्यों की त्यों ही छाई थीं,
सोचो क्या बीती होगी उस दुल्हन के दिल पर साथी?
जिस रोज सुहाग की अर्थी आँगन कांधे धर के आई थी।