मुक्तक
मन में आग अधर हैं प्यासे चेहरों पर फिर भी मुस्कान,
मृत आवाज़ों का कोलाहल मीलों तक बस्ती बीरान,
इंसानों का जंगल दुनिया चेहरे दर चेहरे इंसान,
जग में आकर जीव-फ़रिश्ता भूल गया अपनी पहचान।
मन में आग अधर हैं प्यासे चेहरों पर फिर भी मुस्कान,
मृत आवाज़ों का कोलाहल मीलों तक बस्ती बीरान,
इंसानों का जंगल दुनिया चेहरे दर चेहरे इंसान,
जग में आकर जीव-फ़रिश्ता भूल गया अपनी पहचान।