मुक्तक
कभी तो किसी शाम को घर चले आओ।
कभी तो ग़मों से बेख़बर चले आओ।
हर रात बीत जाती है मयखाने में-
कभी तो रास्ते से मुड़कर चले आओ।
मुक्तककार- #मिथिलेश_राय
कभी तो किसी शाम को घर चले आओ।
कभी तो ग़मों से बेख़बर चले आओ।
हर रात बीत जाती है मयखाने में-
कभी तो रास्ते से मुड़कर चले आओ।
मुक्तककार- #मिथिलेश_राय