मुक्तक
समंदर के किनारों पर निशां गर हम बनायेंगे
मगर उसकी लहर को हम कभी क्या रोक पायेंगे।
निशानी रेत पर रहती नहीं समझा करो “भाऊ”
लहर चलते समंदर की, सभी कुछ हम गवायेंगे।।
समंदर के किनारों पर निशां गर हम बनायेंगे
मगर उसकी लहर को हम कभी क्या रोक पायेंगे।
निशानी रेत पर रहती नहीं समझा करो “भाऊ”
लहर चलते समंदर की, सभी कुछ हम गवायेंगे।।