मुक्तक
[ संवेदना छल है ]
निज हित पूरन करने के जतन ,
दंगा रचाकर बेच रहे कफ़न ,
शव सफ़र की संवेदना छल है,
खुद की दुकान रोशन के यतन ।।
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आजाद मुल्क के रहनुमाओ का करतब़ ,
दिल को बेपनाह मिलता सुकून-ए-सब़ब,
बरसा, बाढ़ विनाश का हवाई भ्रमण ,
जनता जाए भाड़ में आसन से मतलब ।।
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अंधेर नगरी चौपट राजा का दौर-ए-आम ,
हाट में वस्तुएँँ बिकती टका सेर खुलेआम,
रुपहले मंच पर सूपनखा का उजला रूप ,
तिजारती दौड़ में नारी शोषित सारेआम ।।
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नजरों से गिरे को उठाने से क्या होगा ,
लगँड़े को रण में दौड़ाने से क्या होगा,
यारों जिसने दूध बोतल से पिया हो,
अखाड़े में दंगल लड़ाने से क्या होगा ।।
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रावण कंस की वृत्तियो ने लिया आकार ,
अलगांव वादी गतियो ने लिया हुंकार ,
शर्म से लजा गया अखण्ड़ता का प्रियहार,
विधान पर भारी हो भीड़ की ललकार ।।
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शेख जाफर खान