मुक्तक
१. पिता
मेरे जीवन की नैया का उम्मीद भरा पतवार पिता।
हर मुश्किल जो आये मुझपर उसका खेवनहार पिता।
बरगद बनकर छाँव घनेरी इस जीवन के उपवन में-
हर उलझन के मध्य खड़ा अंगद बन रखवार पिता।।
२.रिश्ता
……….
रिश्ता जैसे पानी और प्यास का।
रिश्ता जैसे जीवन और सांस का।
कुछ रिश्ते अनमोल है इस जगत में-
रिश्ता जैसे भक्त और विश्वास का।।
३.
……
रिश्ता नया था तो गले से लगा लिया।
कुछ दिन ही बीते खुद से जुदा किया।
जैसे ही रिश्तों मे आया पुरानापन-
खुद से तो क्या शहर से भगा दिया।।
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✍✍.संजीव शुक्ल “सचिन”
मुसहरवा (मंशानगर)
पश्चिमी चम्पारण
बिहार
#साहित्यिक_उदगार