मुक्तक
तीन मुक्तक—
1…
अतृप्ति यह भावों की ।
संतृप्ति यह हालतों की ।
आदि अनादि की परिधि से,
सृष्टि चलती विस्तारों की ।
.2..
जिव्हा शब्द से लद जाती ।
मीठे कड़वे से फल लाती ।
सींच रहे है जिन भावों से ,
मन की माटी फ़सल उगाती ।
3…
आज बदले से हालात हैं ।
नही रंग-ऐ-ज़ज्बात हैं ।
जात मजहब के नाम पर ,
बंट रहा वो लहू , जो साथ है ।
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…. विवेक दुबे”निश्चल”@….
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