मुक्तक
मन मधुबन में,माखन मुख में औ ह्रदय रहै भजन में।
प्रीत ये कैसी लागी है,पग पल पल भटकै वृन्दावन में।
वंशी कछु तान सुनावै औ गोहरावै मथुरा ‘भूषन’ कौ-
इ तन कौ कब शरन मिलिहै,नन्दनन्दन कै चरनन में।
—-विवेक भूषण पाण्डेय
मन मधुबन में,माखन मुख में औ ह्रदय रहै भजन में।
प्रीत ये कैसी लागी है,पग पल पल भटकै वृन्दावन में।
वंशी कछु तान सुनावै औ गोहरावै मथुरा ‘भूषन’ कौ-
इ तन कौ कब शरन मिलिहै,नन्दनन्दन कै चरनन में।
—-विवेक भूषण पाण्डेय