मुक्तक
वफ़ा को वेवफा, और वेवफा को वावफ़ा लिक्खें,
सुलगती दोपहरी को भी, ये सावन की घटा लिक्खें।
बदलते वक्त से मजबूर हैं, नारद के वंशज भी,
ये सच को झूठ न लिक्खें, तो बोलो, और क्या लिक्खें।।
-विपिन शर्मा
वफ़ा को वेवफा, और वेवफा को वावफ़ा लिक्खें,
सुलगती दोपहरी को भी, ये सावन की घटा लिक्खें।
बदलते वक्त से मजबूर हैं, नारद के वंशज भी,
ये सच को झूठ न लिक्खें, तो बोलो, और क्या लिक्खें।।
-विपिन शर्मा