मुक्तक
मद्धम हवा का बदला, आवेश हो गया है,
जो कर रहा कलंकित, परिवेश हो गया है।
केसर की क्यारियों में, हैं बीज नफ़रतों के,
कश्मीर मानो दूजा, कोई देश हो गया है।।
©विपिन शर्मा
मद्धम हवा का बदला, आवेश हो गया है,
जो कर रहा कलंकित, परिवेश हो गया है।
केसर की क्यारियों में, हैं बीज नफ़रतों के,
कश्मीर मानो दूजा, कोई देश हो गया है।।
©विपिन शर्मा