मुक्तक
सजा कर थाल में कंकू बहन की आ गई राखी
लगा कर भाल पर टीका उभर कर छा गई पाखी
सजे जब रेशमी धागे सहज भैया कलाई में
महक माटी खिले नैना तिलक लिपटा गई साखी।।-1
मनोरम हो गए उपवन रंग ले खिल गई कलियाँ
बहन को मिल गया बीरन खुशी बटने लगी गलियाँ
बँधी महिमा कलाई में उमड़कर स्नेह की राखी
भावना से मिला भैया मिली बिसरी हुई ख़ुशियाँ।।-2
महातम मिश्र गौतम गोरखपुरी