मुक्तक
आज वो मेरे नाम की, मेंहदी लगाए बैठी थी।
पहुंचा नहिं था ,वो खुद को सजाए बैठी थी।
प्यार मेरा भीख में मिल जाए इस उम्मीद में-
वो अपने हाथों में कासा लगाए बैठी थी।
प्रो० राहुल प्रताप सिंह
आज वो मेरे नाम की, मेंहदी लगाए बैठी थी।
पहुंचा नहिं था ,वो खुद को सजाए बैठी थी।
प्यार मेरा भीख में मिल जाए इस उम्मीद में-
वो अपने हाथों में कासा लगाए बैठी थी।
प्रो० राहुल प्रताप सिंह