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28 Sep 2017 · 1 min read

मुक्तक

मुक्तक

चिलमन हटी निगाह तलबगार से मिली।
कंटक भरी गुलाब कली प्यार से खिली।
सच कह दूँ जनाब मान जाएँगे-
दर्दे ज़िगर कटार वफ़ा नाम से चली।

डॉ. रजनी अग्रवाल “वाग्देवी रत्ना”
संपादिका-साहित्य धरोहर
महमूरगंज, वाराणसी।

Language: Hindi
434 Views
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Books from डॉ. रजनी अग्रवाल 'वाग्देवी रत्ना'
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