मुक्तक
मुक्तक
चिलमन हटी निगाह तलबगार से मिली।
कंटक भरी गुलाब कली प्यार से खिली।
सच कह दूँ जनाब मान जाएँगे-
दर्दे ज़िगर कटार वफ़ा नाम से चली।
डॉ. रजनी अग्रवाल “वाग्देवी रत्ना”
संपादिका-साहित्य धरोहर
महमूरगंज, वाराणसी।
मुक्तक
चिलमन हटी निगाह तलबगार से मिली।
कंटक भरी गुलाब कली प्यार से खिली।
सच कह दूँ जनाब मान जाएँगे-
दर्दे ज़िगर कटार वफ़ा नाम से चली।
डॉ. रजनी अग्रवाल “वाग्देवी रत्ना”
संपादिका-साहित्य धरोहर
महमूरगंज, वाराणसी।