मुक्तक
मुक्तक
सजा कर प्रीत के सपने लिए तस्वीर बैठे हैं।
इबादत में सनम तुझको बना तकदीर बैठे हैं।
छलावा कर रही दुनिया यहाँ जज़्बात झूठे हैं-
बने रांझा मुहोब्बत में समझ कर हीर बैठे हैं।
डॉ. रजनी अग्रवाल “वाग्देवी रत्ना”
संपादिका-साहित्य धरोहर
महमूरगंज, वाराणसी(मो.-9839664017)