मुक्तक
हुनर उनको जीने का आया नहीं है
अदब से जो ये सिर झुकाया नहीं है
भले कद है उनके फ़लक से भी ऊँचे
मगर उन दरख़्तों की छाया नहीं है
मोनिका “मासूम”
मुरादाबाद
हुनर उनको जीने का आया नहीं है
अदब से जो ये सिर झुकाया नहीं है
भले कद है उनके फ़लक से भी ऊँचे
मगर उन दरख़्तों की छाया नहीं है
मोनिका “मासूम”
मुरादाबाद