रमेशराज के दो मुक्तक
जटा रखाकर आया है, नवतिलक लगाकर आया है
मालाएं-पीले वस्त्र पहन, तन भस्म सजाकर आया है
जग के बीच जटायू सुन फिर से होगा भारी क्रन्दन
सीता के सम्मुख फिर रावण झोली फैलाकर आया है |
+रमेशराज
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गाली देते प्रातः देखे, संध्याएँ पत्थरबाज़ मिलीं
ईसा-सी, गौतम-गाँधी-सी संज्ञाएँ पत्थरबाज़ मिलीं |
कटुवचन-भरा, विषवमन भरा भाषा के भीतर प्रेम मिला
अब सारी चैन-अमन वाली कविताएँ पत्थरबाज़ मिलीं |
+रमेशराज