मुक्तक
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तड़प ऐ इश्क की दिल से कही नहीं जाती
चंद कदमों की दूरी भी अब सही नहीं जाती
इक तलब महबूब की और जमाने की बंदिशें
बेकाबू है ये जान अब सीने में रही नहीं जाती
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तड़प ऐ इश्क की दिल से कही नहीं जाती
चंद कदमों की दूरी भी अब सही नहीं जाती
इक तलब महबूब की और जमाने की बंदिशें
बेकाबू है ये जान अब सीने में रही नहीं जाती
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