#मुक्तक-
#मुक्तक-
■ थोथे रिश्तों की पैरवी।
[प्रणय प्रभात]
“गर्मी में एक खिड़की, खुलती है हवा आए।
सर्दी की रात खिड़की, वो बंद भी होती है।
रिश्तों में गर्मजोशी, घट जाए नया क्या है,
जो आग भड़कती है, वो मंद भी होती है।।”
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#आत्मकथ्य-
सम्बंध भी खिड़की जैसे होते हैं। मौसम (मतलब) के हिसाब से खुलते व बन्द होते रहते हैं। इसमें ताज्जुब काहे का??
-सम्पादक-
●न्यूज़&व्यूज़●
(मध्य-प्रदेश)