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24 Sep 2024 · 1 min read

मुक्तक

ना लाटरी लगी न विरासत में पाए हैं
ना ही किसी का मार के हक़ ये जुटाए हैं

ये जो अना की ख़ुशबू महकती है जिस्म से
इसको तो हम पसीना बहाकर कमाए हैं

प्रीतम श्रावस्तवी

Language: Hindi
20 Views
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