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31 Aug 2024 · 1 min read

मुक्तक

चलते – चलते मैं कभी – कभी
लड़खड़ा जाता हूँ
चलते – चलते मैं कभी – कभी
राह भटक जाता हूँ l

सम्भाल लेता हूं खुद को
अपने हौसलों के दम पर
निकल पड़ता हूं राहे मंजिल की ओर
तब जाकर खुद से नजरें मिला पाता हूं ll

अनिल कुमार गुप्ता अंजुम

1 Like · 53 Views
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