मुक्तक
मुक्तक
मुख मयंक पर मेघ की, रास करे बौछार ।
केशों से मुक्ता ।गिरे, अधर लगें अंगार ।
नीरज नैना मद भरे , अधर तृषा के तीर –
श्वेत वसन से झाँकता, उसका रूप अपार ।
सुशील सरना
मुक्तक
मुख मयंक पर मेघ की, रास करे बौछार ।
केशों से मुक्ता ।गिरे, अधर लगें अंगार ।
नीरज नैना मद भरे , अधर तृषा के तीर –
श्वेत वसन से झाँकता, उसका रूप अपार ।
सुशील सरना