मुक्तक
बह्र….. 22 22 22 22 22 22 2,,,
मुक्तक,,,,
आकर के कभी देखो , बज़्म-ए-सुखन ए आराई ,
चलती ही चली जाती, जब साथ हो ये परछाई ,
अहबाब मचल उठते, सुनकर के तेरी ग़ज़लों को,
अल्फाज़ छलकते ,आह -ए- ज़ेर-ए- लब पैमाई।
✍️ नील रूहानी ,,,, 01/05/2024,,,,,,,,,,,,,,,🥰