मुक्तक
जहां भी मिल जाती है ठंडी मीठी छांव
वहीं रात गुजर कर लेता हूं
चंद फूलों की खुशबू को ही
फूलों का गुलशन कर लेता हूं l
नहीं इंतजार करता हूँ सुबह का
स्याह शाम को ही सफर कर लेता हूं
क्यूँ कर यूँ ही गुजर जाये जिंदगी
हर एक पल को अपनी अमानत कर लेता हूं l