मुक्तक
हुई छलकते जाम से, मस्त नशीली शाम।
नज़रों के खंजर चले, इश्क हुआ बदनाम।
बाहों में फिर हुस्न का, ऐसा चढ़ा सुरूर –
तन्हाई में दे दिया, उल्फत को अंजाम।
सुशील सरना
हुई छलकते जाम से, मस्त नशीली शाम।
नज़रों के खंजर चले, इश्क हुआ बदनाम।
बाहों में फिर हुस्न का, ऐसा चढ़ा सुरूर –
तन्हाई में दे दिया, उल्फत को अंजाम।
सुशील सरना