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10 Jan 2024 · 1 min read

* मुक्तक *

* मुक्तक *
आंधियों में सहज जल उठेंगे दिए।
आस मन में जरा सी जगा दीजिए।
सब बढ़े जा रहे सबके गंतव्य हैं।
कौन रुकता यहां है किसी के लिए।
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-सुरेन्द्रपाल वैद्य, १०/०१/२०२४

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