हिन्दी के साधक के लिए किया अदभुत पटल प्रदान
हसरतें बहुत हैं इस उदास शाम की
Abhinay Krishna Prajapati-.-(kavyash)
आया दिन मतदान का, छोड़ो सारे काम
Men are just like books. Many will judge the cover some will
23/140.*छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
जिसनें जैसा चाहा वैसा अफसाना बना दिया
*मोती बनने में मजा, वरना क्या औकात (कुंडलिया)*
......देवत्थनी एकदशी.....
इक तुम्ही तो लुटाती हो मुझ पर जमकर मोहब्बत ।
"रिश्ता" ग़ज़ल
Dr. Asha Kumar Rastogi M.D.(Medicine),DTCD
एक बात तो,पक्की होती है मेरी,