मुक्तक
(दोहा मुक्तक)
प्रेमी उड़कर जा बसे,धरा गगन के बीच।
बनी प्रेम शुचिता रहे,पड़े न उन पर कीच।
खोज खोजकर दृष्टि हर,पहुँच गई आकाश,
लगा टकटकी देखता,पतित अधम हर नीच।।
डाॅ. बिपिन पाण्डेय
(दोहा मुक्तक)
प्रेमी उड़कर जा बसे,धरा गगन के बीच।
बनी प्रेम शुचिता रहे,पड़े न उन पर कीच।
खोज खोजकर दृष्टि हर,पहुँच गई आकाश,
लगा टकटकी देखता,पतित अधम हर नीच।।
डाॅ. बिपिन पाण्डेय