मुक्तक
लोग अपने ही मिले हर राह पर
बन सके मेरे नहीं अपने कभी
सब दूसरे मिलते रहे हर मोड़ पर
साँस भी चलती रही और ज़िन्दगी बढ़ती रही।
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तुम कहो तो हास्य लिखूँ
या करुण सौभाग्य लिखूँ
वेदना का दर्द और फिर
हास्य का दुर्भाग्य लिखूँ।
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कर्तव्य-पथ पर दृढ रहो
चिंता नहीं कुछ भी
हिमालय आ रहा है
आज तेरा पाँव छूने।