मुक्तक
हो समागम अगर बुद्धि का ज्ञान का,
योग्यता का प्रतिभा के सम्मान का,
आइए हम सभी आज दर्शन करें,
मां वाणी व, वाणी के वरदान का।
हां अमर हैं ये, अक्षर कहें हम जिन्हे,
मधु झंकार वीणा की बोलें किन्हे,
ग्रंथ रचना के, ये ही आधार हैं।
शिल्प, रस, भाव, रंगों में घोलें इन्हें।
आज कलछी, कलम साथ ले हम बढ़ें ,
नित्य नई, उन्नति के शिखर पर चढ़ें,
यह धरा, तो धरा, हम गगन नाप लें,
नित्य इतिहास, नूतन नवल हम गढ़ें।
इंदु पाराशर