मुक्तक-
मुक्तक-
जब तक थे माँ-बाप तो ,मैं था मालामाल।
उनके जाने से हुआ , दीन – हीन कंगाल।
गाँव छोड़, आया शहर, बेचा खेत मकान,
बिना रूह के जिस्म को,रखता कौन संभाल।।
डाॅ बिपिन पाण्डेय
मुक्तक-
जब तक थे माँ-बाप तो ,मैं था मालामाल।
उनके जाने से हुआ , दीन – हीन कंगाल।
गाँव छोड़, आया शहर, बेचा खेत मकान,
बिना रूह के जिस्म को,रखता कौन संभाल।।
डाॅ बिपिन पाण्डेय