मुक्तक
चल पड़े हैं कदम अब रुकेंगे नहीं।
चाटुकारों के आगे झुकेंगे नहीं।
लाख अड़चन पड़े, मंजिलों तक मग़र,
वेदना से भरे स्वर उठेंगे नहीं।
अभिनव मिश्र अदम्य
चल पड़े हैं कदम अब रुकेंगे नहीं।
चाटुकारों के आगे झुकेंगे नहीं।
लाख अड़चन पड़े, मंजिलों तक मग़र,
वेदना से भरे स्वर उठेंगे नहीं।
अभिनव मिश्र अदम्य