*मुक्तक*
क्यूं इक बार भी मुड़के ना देखा कोई तड़प रहा है तेरे बिन !
अब मैंने भी रहना सीख़ लिया है जैसे तू रह रहा है मेरे बिन !!
सोचा न था तुमसे बिछड़ कर यूँ जीना मुमकिन हो पाएगा !
बेशक़ मत आना अब लौट के जीना सीख़ लिया है तेरे बिन !!
क्यूं इक बार भी मुड़के ना देखा कोई तड़प रहा है तेरे बिन !
अब मैंने भी रहना सीख़ लिया है जैसे तू रह रहा है मेरे बिन !!
सोचा न था तुमसे बिछड़ कर यूँ जीना मुमकिन हो पाएगा !
बेशक़ मत आना अब लौट के जीना सीख़ लिया है तेरे बिन !!