‘मुक्तक’
आँखें हैं चकाचौंध सी, ये मेरे रूबरू कौन है?
कनक अंबर है लपेटे, बोलता यहाँ पर मौन है।
श्याम सी जुल्फें बिखेरे,कातिलाना सी अदा,
हे प्रकृति प्यारी मोहनी, मछरिया तू सोन है!
©®
गोदाम्बरी नेगी
आँखें हैं चकाचौंध सी, ये मेरे रूबरू कौन है?
कनक अंबर है लपेटे, बोलता यहाँ पर मौन है।
श्याम सी जुल्फें बिखेरे,कातिलाना सी अदा,
हे प्रकृति प्यारी मोहनी, मछरिया तू सोन है!
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गोदाम्बरी नेगी