मुक्तक
वाचाल औरत क्रुद्ध होकर, शब्द कड़बे बोलती।
सुनकर हृदय संतप्त होता, भेद घर का खोलती।।
छल और अतिअभिमान कर परिवार में करती कलह।
पति और बच्चों के लिए वह विष भयानक घोलती।। (1)
संबंध भौतिक आप ही, जुड़ते सहज संयोग से।
कुछ मुस्कुराते प्रेम में, कुछ रूठ जाते भोग से।।
माता-पिता बहना सहोदर भ्रात को खोना न तुम।
ये खून के रिश्ते कभी मिलते नहीं उद्योग से ।।(2)