मुक्तक
अगर फूलों की चाहत है तो फिर खारों से बचना है,
मज़हब ओढ़कर निकलें उन अदाकारों से बचना है,
बचाना है जरूरी ग़द्दार देशद्रोहियों से इस वतन को
नक़ाबपोश, आतंकी, बेईमान किरदारों से बचना है,,
अगर फूलों की चाहत है तो फिर खारों से बचना है,
मज़हब ओढ़कर निकलें उन अदाकारों से बचना है,
बचाना है जरूरी ग़द्दार देशद्रोहियों से इस वतन को
नक़ाबपोश, आतंकी, बेईमान किरदारों से बचना है,,