मुक्तक
ना मोहब्बत रही ना फ़साने रहे,
ना रिश्तों के अब वो खज़ाने रहे,
सूरज से नज़रे मिलाने की ज़ुर्रत
ज़िद्द वाले कहाँ अब ज़माने रहे,,
ना मोहब्बत रही ना फ़साने रहे,
ना रिश्तों के अब वो खज़ाने रहे,
सूरज से नज़रे मिलाने की ज़ुर्रत
ज़िद्द वाले कहाँ अब ज़माने रहे,,