मुक्तक
नफ़रत की आग फिर से लगाने में लगे हैं,
ये नक़ाबपोश शहर मेरा जलाने में लगे हैं ,
सारे बेईमान,बेलिबास हैं तहज़ीब के बग़ैर
हज़ारो झूठ गढ़ पहचान छुपाने में लगे हैं,,
नफ़रत की आग फिर से लगाने में लगे हैं,
ये नक़ाबपोश शहर मेरा जलाने में लगे हैं ,
सारे बेईमान,बेलिबास हैं तहज़ीब के बग़ैर
हज़ारो झूठ गढ़ पहचान छुपाने में लगे हैं,,