मुक्तक
खुशामद के लिए होंठो पे अफसाना नहीं आता,
मुझे सच को कभी भी झूठ बतलाना नहीं आता
नहीं गिरवी है मेरी आबरू शोहरत के शर्तों पर
कभी डर से इन आँखों को झुक जाना नहीं आता
खुशामद के लिए होंठो पे अफसाना नहीं आता,
मुझे सच को कभी भी झूठ बतलाना नहीं आता
नहीं गिरवी है मेरी आबरू शोहरत के शर्तों पर
कभी डर से इन आँखों को झुक जाना नहीं आता