मुक्तक
शेरो के हम वंशज हैं सुनो आज यह बात बताते हैं,
हम मार झपट्टे खाल बदन से खींच ज़मीं पे लाते हैं,
भय से हमको भय कैसा भय भी हमसे भय खाते हैं,
सर्पों के फन कुचल – कुचल हम हाथो में लहराते हैं
शेरो के हम वंशज हैं सुनो आज यह बात बताते हैं,
हम मार झपट्टे खाल बदन से खींच ज़मीं पे लाते हैं,
भय से हमको भय कैसा भय भी हमसे भय खाते हैं,
सर्पों के फन कुचल – कुचल हम हाथो में लहराते हैं