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25 Sep 2021 · 1 min read

मुक्तक

खुद नदी की धार बनकर खुद ही बहना सीखिए,
मुस्कुरा कर ग़म में भी हर ग़म को सहना सीखिए,
अब इतनी फ़ुर्सत में कहाँ, कोई जो सुन ले दास्तां
ख्वाहिशें हो या कोशिशें आईंने से कहना सीखिए

Language: Hindi
203 Views

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