मुक्तक
खुद नदी की धार बनकर खुद ही बहना सीखिए,
मुस्कुरा कर ग़म में भी हर ग़म को सहना सीखिए,
अब इतनी फ़ुर्सत में कहाँ, कोई जो सुन ले दास्तां
ख्वाहिशें हो या कोशिशें आईंने से कहना सीखिए
खुद नदी की धार बनकर खुद ही बहना सीखिए,
मुस्कुरा कर ग़म में भी हर ग़म को सहना सीखिए,
अब इतनी फ़ुर्सत में कहाँ, कोई जो सुन ले दास्तां
ख्वाहिशें हो या कोशिशें आईंने से कहना सीखिए