मुक्तक – 2
चुल्हों में सभी के नहीं रोटियाँ
बदन पे सभी के नहीं धोतियाँ।
हजारों बिना रोटियों के मरे
करों में सभी के नहीं बोटियाँ।।
भाऊराव महंत “भाऊ”
चुल्हों में सभी के नहीं रोटियाँ
बदन पे सभी के नहीं धोतियाँ।
हजारों बिना रोटियों के मरे
करों में सभी के नहीं बोटियाँ।।
भाऊराव महंत “भाऊ”