मुक्तक
दोराहे पर तड़प रही है, हिंदी अपनी प्यारी।
कोर्ट कचहरी से संसद तक, फिरती मारी-मारी।
बोल विदेशी सबको प्यारे, हिंदी से शरमाते-
गैरों की मत बात करो जी, अपनों से है हारी।
दोराहे पर तड़प रही है, हिंदी अपनी प्यारी।
कोर्ट कचहरी से संसद तक, फिरती मारी-मारी।
बोल विदेशी सबको प्यारे, हिंदी से शरमाते-
गैरों की मत बात करो जी, अपनों से है हारी।