मुक्तक
सदा खुशियांँ नहीं रहती, सदा गम भी नहीं रहते।
जिगर पत्थर बना डाला, नयन अब नम नहीं रहते।
समय के साथ बदला है, जमाना भी अजी अब तो-
मुसीबत लाख आती हैं, निवारण कम नहीं रहते।
अंँधेरा है घना कुछ पल, उजाला खूब आएगा।
नजर यदि लक्ष्य पर होगी, विजय का गीत गाएगा।
घड़ी भर की मुसीबत है, खुशी का साल बाकी है-
अगर है हौसला कायम, मनुज तू जीत जाएगा।
(स्वरचित मौलिक)
#सन्तोष_कुमार_विश्वकर्मा_सूर्य’
तुर्कपट्टी, देवरिया, (उ.प्र.)
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