मुक्तक
बार में लगने लगे हैं मेले
डिस्को थिरकने लगे हैं
हर जगह हर शहर
जाने कहाँ रुकेगा यह सफ़र
**********************************
बारिश की बूंदों से मिलती है राहत तन को , मन को
उसी तरह , जिस तरह
जल की खोज में पक्षी विचरते हैं
दो बूंदों के आचमन के लिए
???????????????????????????????
मालूम नहीं इस धरा पर
क्या अच्छा किया मैंने
इसी कोशिश में कर्म्पूर्ण जीवन
जिए जा रहा हूँ में
}}}}}}}}}}}}}}}}}}}}}}}}}}}}}}}}}}}}}}}}}}}}
मानव होकर , जीवों की भांति
इस धरा पर , विचार रहा हूँ
कुछ खोजने की चाह में
है जो एक विषम प्रश्न