मुक्तक
कौंन जानता कैसे कैसे, ख्वाब सजा लेते हैं लोग,
पसंद किसी के हाथों की, चाय बना लेते हैं लोग !
साँसों में घुलकर धड़कन की, चुस्की लेकर देखो तो,
कभी-कभी कढवी बातों में, शहद मिला लेते हैं लोग !!
जुगनु से दीप दिल में, जला कर के देख लो !
साँसों की मचलनों को, बढ़ा कर के देख लो !!
या किसी के हो जाओ या, अपना बना लीजे !
प्यार के ये दो ही रंग, चढ़ा कर के देख लो !!
रूठ कर भी ये खफा नहीं होते !
अजी! अहसास कभी बेवफा नहीं होते !!
बिखर जाता है टूट कर आईना बेशक,
पर मिजाज-ऐ-किरदार जुदा नहीं होते !!
✍ लोकेन्द्र ज़हर