मुक्तक
विधाता छन्द
मुक्तक
1222 1222, 1222 1222
खनकती चूड़ियों को आज घर पर छोड़ आया हूँ।
सिसकती गोरिये से आज मैं मुँह मोड़ आया हूँ।
वतन की आन से बढ़कर न कोई धर्म है दूजा,
इसी खातिर सभी से आज रिस्ता तोड़ आया हूँ।
अदम्य
विधाता छन्द
मुक्तक
1222 1222, 1222 1222
खनकती चूड़ियों को आज घर पर छोड़ आया हूँ।
सिसकती गोरिये से आज मैं मुँह मोड़ आया हूँ।
वतन की आन से बढ़कर न कोई धर्म है दूजा,
इसी खातिर सभी से आज रिस्ता तोड़ आया हूँ।
अदम्य