मुक्तक
तुम्हारे नदी होने से हमें कोई गुरेज नहीं जाना,
पर हमें रेत मिट्टी की तरह बहा कर तो ले चलो।
हमारे रास्ते हैं एक मंजिल भी एक जाना,
फूलों की खुशबु की तरह बसा कर तो ले चलो।
हमारी यादें क्या इतनी दूर हो गई है तुमसे,
चलो…पुराने गानों की तरह बजा कर तो ले चलो।
तेरी कल-कल निर्मल धारा के काबिल नहीं तो,
दो अभागे किनारे बना कर तो ले चलो।।
…rana…©