मुक्तक
??प्रदूषण का प्रभाव??
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#विधा – मुक्तक
#मापनी – १२२२ १२२२
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विषैला है जहर है वो।
हमें लगता कहर है वो।
जहाँ थी गंध पुष्पों की-
प्रदूषित अब शहर है वो।
जहाँ खेले कभी कूदे।
बिना देखे नयन मूंदे।
अभी चलना हुआ दुस्कर-
कहाँ कब कौन.विष छू दे।
जहाँ बचपन कभी बीता।
लगे उजड़ा कलित रीता।
जहाँ उपजा कनक करते-
यही जन्मीं कभी सीता।
अभी है जोर पर – दूषण।
हमें लगता है खर – दूषण।
हलाहल भर मरुत् में अब-
मिटाने पर अड़ा भूषण।
✍️पं.संजीव शुक्ल ‘सचिन’